सुदर्शन चक्र मारण मंत्र साधना

सुदर्शन चक्र मारण मंत्र साधना

सुदर्शन चक्र मारण मंत्र साधना

सुदर्शन चक्र मारण मंत्र साधना, सामान्य जीवन कई तरह के उतार-चढ़ावों से भरा हुआ है। बाधाओं को दूर करते हुए कर्म पथ पर चलते रहना ही जीवन का मूल मंत्र है। यदि आप इनसे निपटने के लिए किसी अज्ञात शक्ति की कामना करते हैं, तो वह है सुदर्शन चक्र मारण मंत्र। इसकी साधना और मंत्र प्रयोग से हर मुश्किलों को दूर किया जा सकता है।

सुदर्शन चक्र मारण मंत्र साधना

सुदर्शन चक्र मारण मंत्र साधना

असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। जीवन में सकारात्मक पक्ष को जागृत कर नकारत्मकता को खत्म किया जा सकता है। सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का एक शक्तिशालि हथियार है, जिसमें दिव्य शक्ति छिपी है और इसका प्रहार अचूक होता है। विशेष बात यह कि बुराईयों का नाशकर वापस लौट आता है। इस चक्र में कुल 108 दांतें बनी होती हैं और भगवान विष्णु के दाहिने हाथ की शोभा बढ़ाती हैं।

सुदर्शन चक्र मारण मंत्र साधना

चक्र की दिव्यता के पीछे छिपा एक विशेष मंत्र की भावना है, जिसकी सधाना से व्यक्ति अपने  दुखों, रोगों और दुश्मनों का संहार कर सकता है। इस मंत्र के नियमित जाप करने भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है यानी कि व्यक्ति दैविय आभा से प्रभावित हो जाता है। वह मंत्र इस प्रकार हैः-

ओम श्रीं हीं क्लीं, कृष्णाय गोविंदाय, गोपीजन वल्लभाय!

पराया परम पुरुषाय परमात्माने, पराकर्म मंत्रयंत्रौषद्यस्त्रशस्त्राणि!!

औषधा विषा आभिखरा अस्त्र शस्त्राणि, संहारा संहारा मृत्युर मचाया मचाया!

ओम नमो भगवते महा सुदर्शनाय हूं भट!

दीप्तरए ज्वाला परीतय, सर्वे विक्षोभना कराया

हूं पहात पारा ब्रह्मणी परम ज्योतिषी स्वाहा!

ओम नमो भगवती सुदर्शनाय, ओम नमो भगवती महासुदर्शनाय!

म्हा चकराया माहा ज्वालाय, सर्व रोग प्रशमनया, कर्मा बंधा विमोचनाया,

पदाधि मास्था पर्यंत , वादा जनित रोगों, पिता जनित रोगों, दाठु सनकालीकोठ भाव

नाना विकारे रोगों नासाय नासाय, परसमय परसमय आरोगियां देहि देहि!

ओम सहस सरा हम पहात स्वः श्रीसुदर्शन चक्र विद्या!!

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सुदर्शन मंत्र के नियमित जाप से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जा सकता है। किसी खास बाधा से छुटकारा पाने के लिए एक पंक्ति के मंत्र का 108 बार जाप सूर्योदय पूर्व स्नान आदि के बाद किया जाना चाहिए। इससे पहले इसे मारण और धारदार बनाने के लिए पूरे मंत्र का विधि-विधान से साधना करना भी आवश्यक है। साधना आरंभ करने का समय रात्रिकाल है।

सफेद परिधान में असान पर बैठें ओर सामान्य पूजन के साथ  भगवान गणपति मंत्र का एक माला जाप करें। मत्र जाप की कुल संख्या 11,000 है, जिसे अपनी क्षमता के अनुसार सात या 11 दिनों में पूर किया जाना चाहिए। यानि कि प्रतिदिन 11 माला के जाप से इस साधना को पूर्ण किया जा सकता है। हर दिन इसका समापन होने पर भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का ध्यान निम्नलिखित मंत्र से किया जाना चाहिए।

ओम सुदर्शनं महावेगं गोविंदस्य प्रियायुधम्, ज्वलत्पावकसाड्ाकाशं सर्वशत्रुविनाशनम््!

कृष्णप्राप्तिकरं शश्वद्भक्तानां भयभंजनम्, साड्ंग्रामे जयदं तस्माद््ध्यायेद्देवं सुदर्शनमं!!

इस मंत्र के स्मरण के बाद रूद्राक्ष की एक माला से निम्न सुदर्शन रक्षा कवच का जाप किया जाना चाहिए। साधान संपन्न होने तक रूद्राक्ष की माल धारण किए रहना चाहिए।

ओम सुदर्शन चक्राय शीघ्र आगच्छ मम् सर्वत्र रक्षय-रक्षय स्वाहा!!

साधना के ग्यारह दिनों के बाद आनेवाले ग्रहण काल के समय एकबार फिर से मंत्र का 11 बार जाप करना चाहिए। इसकी पूर्णाहुति 1008 हवन की आहूतियों से की जाती है। इस मंत्र के कुछ मारण प्रयोग इस प्रकार हो सकते हैंः-

रोग निवारणः

लंबे समय से चले आ रोग को दूर करने के लिए भगवान विष्णु या भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर के सामने समान्य पूजन के बाद सुदर्शन चक्र मारण मंत्र का रूद्राक्ष की माला से 108 बार जाप करें। जाप से पहले श्रीसुदर्शन चक्र का पूजन किया जाना चाहिए।

सुदर्शन चक्र मारण मंत्र साधना

पूजन विधिः श्रीसुदर्शन चक्र के पास छोटे से कलश में जल रखें। गाय के घी का दीपक जलाएं। सुगंधित धूप दिखाएं और सफेद नैवेद्य से भोग लगाएं। जैसे दूध-चीनी, खीर, दही, कलाकंद आदि। सफेद फूल चढ़ाएं। पूजन के बाद रोग निवारण के लिए विधिवत संकल्प लेते हुए जल छोड़ें। उसके बाद श्रीसुदर्शन चर्क को हाथ में लेकर 3, 7, 11 या 18 बार सुदर्शन मंत्र का जाप करें। इस तरह से कलश में रखा जल अभिमंत्रित हो जात है। उसका रोगी के आसपास छिड़काव कर दें। इस विधि से औषधियों को भी अभिमंत्रित किया जा सकता है।

बाधा मुक्ति और सुरक्षा

कामकाज या कारोबार में आने वाली बाधा या फिर दुश्मनों से सुरक्षा के लिए श्रीसुदर्शन चक्र मंत्र का प्रयोग किया जाता है। वैसे इस प्रयोग से गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति की भी रक्षा होती है। इसे कभी भी, किसी भी समय किया जा सकता है। इसके लिए किसी शुभ दिन या शुभ मुहूर्त तय करने की जरूरत नहीं होती है। फिर भी प्रातः सामान्य पूजन के समय इसका प्रयोग किया जाना चाहिए। शुरूआत श्रीसुदर्शन चक्र के विधिवत पूजन से करनी चाहिए।

यह पूजा रोग निवारण पूजन विधि की तरह होती है। उसके बाद श्रीसुदर्शन चक्र को दाहिने हाथ में लेकर श्रीसुदर्शन चक्र मंत्र का 18 बार जाप करना चाहिए। जाप के बाद चक्र को भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति के पास तीन दिनों तक रहने दें। इसके सकारात्मक परिणाम पहले दिन से दिख सकते हैं। तीनों के बाद उस चक्र को गले में धारण कर लेना चाहिए।

विशेषः सुदर्शन चक्र मारण मंत्र के संबंध में कई विधि-विधान और तरीके बताए गए हैं। इसलिए इसके अनुष्ठान को किसी गुरु के मार्गदर्शन में करने की सलाह दी जाती है। यह भारत की कुछ दुर्लभ विद्याओं मे से एक है। कुछ आवश्यक तथ्य इस प्रकार हैंः-

  • इस मंत्र की साधना भगवान विष्णु को प्रसन्न करने से ही पूर्ण होती है। इसके लिए सफेद रंग का विशेष महत्व होता है। एक खास मंत्र से भगवान विष्णु और उनके सुदर्शन चक्र का ध्यान किया जाता है
  • इसकी साधना किसी को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं किया जाना चाहिए।
  • इस साधना को दूसरों की रक्षा के लिए किया जाता है, विशेषकर असाध्य रोग से ग्रसित बीमार व्यक्ति के लिए किया जाता है। इसक लिए खास विनियोग मंत्र दिए गए हैं।
  • प्रयोग के दौरान मंत्र का जाप कम से कम 18 और अधिक से अधिक 108 बार किया जाना चाहिए
  • जाप का श्रेष्ठ समय ब्रह्म-मुहूर्त होता है। साधना के लिए पूरे मंत्र का जाप करने में पांच से छह घंटे का समय लग सकता है। जिसे एक बैठक मंे ही पूरा किया जाना चाहिए। इस दौरान भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण या फिर भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर सामने रखनी चाहिए।

उल्लू तंत्र सिद्धि तांत्रिक प्रयोग

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